अफगानिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां महिलाओं की शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है

Balajee thakur
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अफगानिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां महिलाओं की शिक्षा प
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Taliban: तालिबान द्वारा लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगाए हुए अब 1112 दिन हो चुके हैं, और आज भी लाखों लड़कियां क्लासरूम से बाहर हैं। अफगानिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां महिलाओं की शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। यह प्रतिबंध, जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद से लागू हुआ है, न केवल महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पूरे समाज के विकास पर गहरा प्रभाव डाल रहा है।

लाखों लड़कियां अपने भविष्य से वंचित

तालिबान द्वारा महिलाओं के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय अफगानिस्तान की लाखों लड़कियों और महिलाओं के लिए एक बड़ा झटका था, जिन्होंने 20 साल के संघर्ष के बाद शिक्षा हासिल करने का मौका पाया था। पिछली सरकार के समय, लाखों लड़कियां स्कूलों में थीं और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। लेकिन तालिबान के आने के बाद से, ये अवसर समाप्त हो गए हैं। इस प्रतिबंध के चलते अब लाखों लड़कियां अपने भविष्य से वंचित हो गई हैं, और उनके सपनों का चकनाचूर होना जारी है।

तालिबान का यह फैसला महिलाओं को एक बार फिर से पिछड़ेपन में धकेलने का प्रतीक है। लड़कियों को शिक्षा से वंचित करना न केवल उनके व्यक्तिगत विकास को रोकता है, बल्कि पूरे देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। किसी भी देश का विकास उसकी आधी आबादी के बिना संभव नहीं है, और महिलाओं को शिक्षा से वंचित करना एक पीढ़ी को गरीबी और असमानता में धकेलने जैसा है।

तालिबान का तर्क है कि इस्लामिक कानून के तहत महिलाओं को शिक्षा की आवश्यकता नहीं है

अफगानिस्तान में लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने का फैसला तालिबान की कट्टर विचारधारा का हिस्सा है, जिसमें महिलाओं के अधिकारों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता है। तालिबान का तर्क है कि इस्लामिक कानून के तहत महिलाओं को शिक्षा की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इस्लामिक शिक्षण और दुनिया भर के इस्लामिक देशों का अनुभव यह साबित करता है कि यह तर्क पूरी तरह से गलत है। दुनिया के कई मुस्लिम देश, जैसे मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की और यहां तक कि सऊदी अरब जैसे देश भी महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करते हैं। इन देशों में महिलाओं की शिक्षा को समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

तालिबान के इस फैसले से लड़कियों और महिलाओं को न केवल शिक्षा से दूर किया गया है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी रोक लगाई गई है। अफगानिस्तान में महिलाएं अब घरों में बंद हैं, उन्हें न तो स्कूल जाने की आजादी है और न ही काम करने की। वे अपने भविष्य को अंधकार में देख रही हैं। इससे पहले जो लड़कियां डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और नेता बनने का सपना देख रही थीं, वे अब घरों में बैठने के लिए मजबूर हैं।

शिक्षा की कमी के कारण अब इन परिवारों की बेटियों का भविष्य अंधकारमय में

इस प्रतिबंध का सबसे बड़ा प्रभाव उन गरीब परिवारों पर पड़ा है, जो अपनी बेटियों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा में शामिल करना चाहते थे। शिक्षा की कमी के कारण अब इन परिवारों की बेटियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है, और वे बाल विवाह, घरेलू हिंसा और गरीबी के चक्रव्यूह में फंसती जा रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान के इस फैसले की कड़ी निंदा की है, लेकिन अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन और कई देश तालिबान पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं कि वह लड़कियों की शिक्षा पर लगे प्रतिबंध को हटाए। लेकिन तालिबान अब भी अपनी कट्टरपंथी विचारधारा पर अड़ा हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय अपीलों को नजरअंदाज कर रहा है।

1112 दिनों के बाद भी अफगानिस्तान की लड़कियां और महिलाएं आशा लगाए बैठी हैं कि एक दिन उनकी शिक्षा का अधिकार उन्हें फिर से मिलेगा। उनके लिए शिक्षा सिर्फ एक अधिकार नहीं, बल्कि उनका भविष्य है। लड़कियों की शिक्षा पर लगाए गए इस प्रतिबंध का तत्काल प्रभाव न केवल अफगानिस्तान पर, बल्कि पूरे विश्व पर पड़ेगा। जब किसी देश की आधी आबादी को शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है, तो उसका विकास कभी पूर्ण नहीं हो सकता।

आज, जब दुनिया प्रगति और समानता की दिशा में आगे बढ़ रही है, तब अफगानिस्तान की लड़कियां शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। यह प्रतिबंध न केवल एक बड़ी सामाजिक समस्या है, बल्कि मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

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I am Balajee thakur and My Position at India Dastak is News Analyst and writing blogs and news articles related to Finance , Career and Trending Topics.
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